Neeraj Agarwal

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लेखनी कहानी -19-Mar-2024

शीर्षक - अभागन कहीं की


         आज हम अभागन कहीं की कहानी के अंतर्गत समाज और हम अपने आप को देखते हैं सच तो यही है कि आज हम सभी अपने स्वार्थ के लिए दूसरे को गलत या उसका उपहास बनाने में कसर नहीं छोड़ते हैं। ऐसे ही अनछुए पहलुओं से गुजरती हुई यह कहानी अभागन कहीं की हम पढ़ रहे हैं। 
          रानी एक अच्छी सुन्दर गदराए बदन की और आधुनिक सोच की काम करने वाली एक विधवा महिला थी और उसके गांव वाले उसे अभागन  कहीं की का नाम दे चुके हैं और रानी अब अपने जीवन से समझौता कर चुकी है। क्योंकि वह अपने गांव से दूसरे गांव काम करने के लिए आती-जाती रहती है और वह भी एक समझदार और एक अच्छे परिवार की लड़की हुआ करती थी उसके साथ उसके गांव की जमीदार नहीं दुराचार करके उसे बदनाम कर दिया था। सच तो रानी एक बहुत समझदार महिला है परंतु जीवन में हमारे समाज और हम अपने स्वार्थ और अपने धन और रुतबे के दौर पर किसी को भी बदनाम कर सकते हैं और अभागन कहीं की कहानी भी यही सच और संदेश हम सबको देता है सच तो यह है कि हम माने या ना माने आज नारी ही नारी की दुश्मन होती है वह अपने स्वार्थ के लिए किसी के साथ एक दूसरे को भी बदनाम कर सकती है।
         ऐसा ही कुछ रानी के साथ भी हुआ था वह जब अपने गांव में रहती थी और एक मजदूरी और घर-घर के काम करती थी तब उसकी सुंदरता और उसके शरीर को देखकर उसी गांव के जमींदार ने उसका शोषण किया था परंतु गांव का जमीदार होने के साथ-साथ वह पैसे वाला और रुतबे के साथ था। और उसके सहयोग में उसकी पत्नी भी शामिल थी जब से रानी ने उसकी पत्नी से उसके पति उसके पति के बारे में शिकायत की  एक नारी दूसरी नारी की वेदना समझेगी। परन्तु जमीदार की पत्नी ने उल्टा रानी को अपने पति की तरफदारी करते हुए रानी को अभागन कहीं की बना दिया। अपने पति जमीदार की बदतमीजी और काली करतूतों पर पर्दा डाल दिया। 
          सच तो रानी अभागन कहीं की इसलिए बन चुकी थी कि उसके सर पर कोई बचाव करने का तरीका ना था और जमीदार के अत्याचार से वह बदनाम हो चुकी थी। रानी को अभागन कहीं की बनाने में जमीदार की पत्नी का पूरा सहयोग था।  सच अगर नारी ही नारी की वेदना ना समझे। तब हम सब इस कहानी को पड़े और कहीं ना कहीं घटना में यह सच और कल्पना के साथ लिखी हुई कहानी है और एक नारी ने दूसरी नारी को आवाहन कहीं की बनवा दिया।
                  आज की कहानी अभागन कहीं की एक संदेश देती है कि आज बहुत सी नारियां जो की अभागन कहीं की कहलाती है वह कहीं ना कहीं एक नारी दूसरी नारी की वेदना समझेगी तब ही हमारे समाज से अभागन कहीं की वेदना से स्वतंत्र अधिकार पा सकती हैं। हां  हम यह नहीं कहते कि सभी नारी एक समान होती है। परन्तु अधिकांश परिवार में अपने जीवन में कमी न आ जाए भला ही दूसरी नारी का जीवन अभागन कहीं की जिंदगी बन जाए।
               आओ हम सभी मुहिम उठाते हैं कि नारी ही नारी का सम्मान करें। और अपने घर की मर्द पुरुष की गलतियों पर पर्दा ना डालें और अपनी तरह दूसरी नारी की वेदना  को समझे।  सच तब ही अभागन कहीं की का नाम खत्म हो सकता हैं।

नीरज अग्रवाल चंदौसी उ.प्र

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7 Comments

Babita patel

30-Mar-2024 09:51 AM

V nice

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Varsha_Upadhyay

23-Mar-2024 11:00 PM

Nice

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Sushi saxena

22-Mar-2024 10:50 PM

Nice

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